हमारे देश के कई राज्यों में दलहनी फसलों की खेती की जाती है। बता दे की दलहनी फसलों में मसूर की खेती भी किसानों के लिए एक अच्छा विकल्प है बता दें कि मैसूर की कीमत भी बाजार में दाल के मुकाबले अच्छी मिलता है। विश्व भर में मसूर उत्पादन में भारत का स्थान दूसरे स्थान पर आता है। मसूर दाल का इस्तेमाल खाने के तौर पर होता है वहीं मिठाइयों में भी इस्तेमाल किया जाता है।
मसूर की खेती दलहन फसल होता है और इसको खेत में बिजाई के बाद जमीन की उपजाऊ क्षमता में बढ़ोतरी होती है। क्योंकि दलहन फसल में जड़ों में गांठ पाया जाता है जिसके चलते जमीन में नाइट्रोजन की मात्रा में वृद्धि होती है।
किसान भाइयों आज हम आपको मसूर की उन्नत किस्म (मसूर की टॉप 5 किस्मों) के बारे में बताएंगे जिसे बिजाई करने के बाद आपको अच्छी उत्पादन मिलेगा। देश के कई राज्यों में अलग-अलग किस्म के द्वारा मसूर की खेती की जाती है और उसका उत्पादन और क्या-क्या विशेषताएं हैं आईए जानते हैं
मसूर की टॉप 5 किस्मों
मसूर की किस्म मलिका (के 75): मसूर की किस्म मलिका के 75 (Malika (K 75) बिजाई के लिए उपयुक्त राज्य उत्तर प्रदेश बिहार छत्तीसगढ़ गुजरात और मध्य प्रदेश के लिए सही माना गया है। मसूर की इस कम को होने के बाद 120 से 125 दिन का समय पककर तैयार होने में लगता है। इस कि एम में उत्पादन किया अगर हम बात करें तो एवरेज पैदावार 4.8 से 6 प्रति एकड़ क्विंटल रहता है वही इस किस्म में दाना गुलाबी रंग और आकार में मोटा होता है।
मसूर की किस्म पंत एल- 639: इस किस्म में उखाड़ रोग प्रतिरोधक की सम है जिससे इस रोग से छुटकारा मिलता है वहीं दाने झड़ने की समस्या कम रहती हैं। पैदावार की बात की जाए तो 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक रहता है वहीं पकाने का समय 130 से 140 दिन में तैयार हो जाता है।
मसूर की किस्म पंत एल- 406: इस किस्म के बोने की सही उपयुक्त खेती के लिए उत्तर पूर्वी और पश्चिम के मैदानी भागों में किया जाता है वही इस किस्म को जम्मू कश्मीर के भागों में भी बुवाई की जाती है। बता दे कि इस किस्म की एवरेज पैदावार 12 से 13 प्रति एकड़ क्विंटल तक उत्पादन रहता है वही इस किस्म में कटाई के लिए 150 दिन का समय रहता है वहीं इस किस्म में रस्ट रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक है।
मसूर की किस्म पूसा वैभव (एल 4147): इस किस्म को पानी और बिना पानी वाली जमीन में भी बुवाई करने के लिए उपयुक्त माने गई है और इस किस्म में दाना का आकार छोटा रहता है वही इस किस्म में आयरन की मात्रा भी ज्यादा पाई जाती है। उत्पादन की बात करें तो एवरेज पैदावार 7 से 8 प्रति एकड़ क्विंटल तक मिलती है।
मसूर की किस्म पूसा शिवालिक (एल 4076): मसूर की यह किस्म को भी बीना सिंचाई वाले इलाकों में आसानी से किया जा सकता है। वही इस किस्म में बोने की बात की जाए तो उत्तराखंड हिमाचल प्रदेश पंजाब हरियाणा राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उपयुक्त मानी गई है। । वही इस जिस में उत्पादन किया अगर हम बात करें तो एवरेज पैदावार लगभग 6 क्विंटल तक प्रति एकड़ रहता है। वही इस किस्म को पकने में करीब 120 से 25 दिन का समय में तैयार हो जाती है।
मसूर की खेती के लिए बुवाई का समय
मसूर की खेती के लिए सबसे उपयुक्त समय 15 से 20 अक्टूबर के से 15 से 20 नवंबर के तक माना गया है। मसूर की बिजाई करने से पूर्व जमीन को अच्छी तरह से जुटाए करें और उनमें बीज को उपचारित करके ही बिजाई करें
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