किसान गेहूं की फसल में करनाल बंट रोग (Karnal Bunt Of Wheat) के लक्षण, और जानें नियंत्रित के कौन सा दवा का इस्तेमाल करना चाहिए
किसानों के द्वारा गेहूं की फसल बुवाई के बाद अब 60 से 70 दिन के करीब हो चुका है। ऐसे में मध्य प्रदेश राज्य के कई क्षेत्रों में (Karnal Bunt Of Wheat) करनाल बंट रोग का प्रभाव गेहूं की फसल में देखने को मिल रहा है। ऐसे में किसानों को गेहूं की फसल में कृषि विभाग में सावधानियां रखने के लिए कहा है बता दें कि करनाल बंट रोग से किसानों की गेहूं की पैदावार में कमी देखने को मिल सकता है। या इसके चलते फसल में काफी नुकसान भी हो सकता है। ऐसे में कृषि विभाग के द्वारा किसानों को इस (Karnal Bunt Of Wheat) रोग के लिए क्या-क्या सावधानियां बरतनी हैं, इसके लक्षण और क्या उपाय हैं वह हम इस आर्टिकल के द्वारा जानेंगे।
गेंहू में करनाल बंट रोग (Karnal Bunt Of Wheat)
करनाल बंट रोग को वैसे आंशिक बंट रोग भी कहा जाता है। देश में सबसे पहले गेहूं की फसल में करनाल बंट रोग पहली बार वर्ष 1931 में करनाल, अविभाजित पंजाब (भारत) होने का रिपोर्ट में पता चला। यह रोग गेहूं की फसल में ही देखने को मिलता है बता दें कि करनाल बंट रोग टिलटिया इंडिका एक कवक के कारण गेहूं फसल में होता है। जो कि फसल में फूल आने की अवस्था में दानों को संक्रमित करता है। फसल का उत्पादन और अनाज के दाने का रंग भी खराब कर सकता है।
करनाल बंट रोग गेहूं की फसल क्या क्या लक्षण है
किसानों के लिए करनाल बंट रोग पहचान के लिए बता दें कि यह रोग जनक कवक दाने बनने से पहले फूल आने की अवस्था में गेहूं को संक्रमित करता है। लेकिन इसके लक्षण केवल तभी देखने को मिलते हैं। जब दाने पूरी तरह से बन जाता है। इस रोग से गेहूं के सभी बालियां में संक्रमित नहीं होता है। लेकिन इसकी पहचान के लिए गेहूं की फसल में स्पाइक, काली स्पाइकलटेस् द्वारा सक्रंमित बोलियों को देखकर इसके लक्षण का पता लगाया जा सकता है।
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करनाल बंट रोग Karnal Bunt Of Wheat में एक फंगस बन जाता होता है। जिससे गेहूं के दानों में Karnal Bunt Gehu का कारण बनता है। जब गेहूं के दाने इससे सक्रंमित होता है, तो दाने के अंदर में एक काले पाउडर जैसा देखने को मिलता है। और इसकी गंध मछली की तेज गंध जैसी है। यह अंत के भ्रूण को नहीं, बल्कि अंतर्निहित दानों के भागों को प्रभावित करता है।
Karnal Bunt of wheat : करनाल बंट रोग मिट्टी, बीज और हवा के द्वारा आगे फैलता है। बता दें कि इस रोग जनक का आने में मौसम पर काफी निर्भर करता है। तापमान की बात करें तो न्यूनतम तापमान 8 से 10 डिग्री और अधिकतम तापमान 19 से 23 डिग्री सेल्सियस के साथ-साथ उच्च सापेक्ष आर्द्रता और रुक-रुक कर होने वाली वर्षा के चलते इस रोग के बढ़ने की चांस ज्यादा हो जाते हैं।
करनाल बंट रोग को नियंत्रित करने के लिए कोन सा दवा
गेहूं के खेतों में Karnal Bunt of Wheat को रोकने के लिए, किसानों को टेबुकोनाजोल पॉलिकुर 250 ईसी) 0.1 % या प्रोपिकोनाजोल (टिल्ट 25 ईसी) 0.1 % नामक स्प्रे का उपयोग करना चाहिए। किसान स्प्रे को फरवरी के मध्य में स्प्रे से छिड़काव करना हेतु है, जिससे करनाल बंट रोग को नियंत्रित किया जा सकता है। Gehu Me Karnal Bunt रोग प्रभावित क्षेत्रों में, बीज की फसल पर प्रोपिकोनजोल की 1 स्प्रे इसे लगाना चाहिए, ट्राइकोडर्मा विरिडी के 2 छिड़काव या फिर इयरहैड्स के प्रारंभिक विकास के समय का उपयोग किया जा सकता हैं।
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