भारत में कृषि बड़े स्तर पर की जाती है और इसीलिए भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता है। हमारे देश में अनाज के साथ-साथ कई प्रकार की सब्जियों की खेती भी की जाती है वहीं कुछ सब्जियों की खेती विशेष तौर पर अलग-अलग खेतों में बोई जाती है वहीं कुछ सब्जियों फसल के साथ भी लगाई जाती है। इन सब सब्जियों में से लहसुन की खेती भी प्रमुख मानी जाती है। किसानों के द्वारा कई प्रकार की किस्म के लहसुन की खेती की जाती है लेकिन आज हम आपको उन पांच किस्म के बारे में बताएंगे जो की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़िया है। जिससे कम खर्चे में अच्छी पैदावार दी जा सकती है।
लहसुन की अच्छी किस्म टॉप 5
देश में कई राज्यों में लहसुन की फसल बोई जाती है। लहसुन की खेती में उन्नत बीज के साथ-साथ उचित खाद का प्रबंध का चुनाव सही समय पर करना चाहिए जिससे लहसुन की खेती में अच्छा पैदावार मिले। लहसुन की खेती में ज्यादा ठंड और गर्मी की आवश्यकता नहीं होती बल्कि नॉर्मल तापमान में या बेहतर पैदावार होती है।
इसी कारण किसानों के द्वारा अक्टूबर महीने में इसकी बुवाई करते हैं और लहसुन की अच्छी किस्म, अच्छे बीज और खाद का प्रयोग कर कर अच्छी कमाई कर सकते हैं आज हम लहसुन की बेस्ट पांच किस्म के बारे में जानेंगे
लहसुन की अच्छी किस्म टॉप 5। Lahsun ki top 5 variety
लहसून की किस्म यमुना सफेद 1 (जी 1) किस्म
इस किस्म का पकने का समय 150 से 160 दिन का रहता है, इसकी पैदावार अनुमानित 160 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त की जा सकती है, यदि उचित समय पर बुवाई एवम् उर्वरक का इस्तेमाल करे तो अधिक पैदावार भी प्राप्त की जा सकती है।
लहसून की किस्म यमुना सफेद 2 (जी-50) किस्म
लहसून की इस किस्म का पकने का समय 160 से 170 के बीच होता है, अनुमानत इसका उत्पादन प्रति हैक्टेयर 130 से 140 का लगाया गया है इसकी मुख्य खासियत त्वचा सफेद, शल्क कंद ठोस एवम् गुदा क्रीम कलर की होती है।
लहसून की किस्म यमुना सफेद 3 (जी 282) किस्म
लहसून की यह किस्म 140 से 150 दिनों में पक जाती है एवम् इसका उत्पादन प्रति हैक्टेयर भूमि में 150 से 175 तक लिया जा सकता है। इसकी प्रमुख विशेषता में सफेद रंग की कलियां, गुदा क्रीम रंग एवम् कंद में 15 से 18 कलियां होती है, इस किस्म को निर्यात के लिए सबसे महत्वपूर्ण माना गया है।
लहसून की किस्म एग्रीफाउंड सफेद किस्म (जी 41) किस्म
यह किस्म तकरीबन 160 से 165 दिनों में पक जाती है एवम् उत्पादन की बात करे तो इससे तकरीबन ओसत पैदावार 125 से 130 क्विंटल प्रति हेक्टेयर ली जा सकती है, इसकी मुख्य विशेषता यह है कि बैंगनी धब्बा और झुलसा रोग के प्रति अच्छी प्रतिरोधक है, वही इस किस्म का कंद ठोस, गुदा क्रीम रंग की होती है एवम् कंद में तकरीबन 20 से 25 कलियां बनाती है।
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