इस वर्ष सरसों की बिजाई रिकॉर्ड और अनुकूल मौसम से देश में इस बार फिर सरसों का शानदार उत्पादन होने की उम्मीद है। उत्पादक मंडियों में नए सरसों में की बढ़ती आवक के साथ-साथ इस महत्वपूर्ण तिलहन फसल का भाव लगातार घट रहा है और सरसों का भाव 5450 रुपए प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे आ गया है जिससे किसानों की चिंता और निराशा बढ़ती जा रही है।
Mustard price: शनिवार को भारत में सरसों की कुल दैनिक आवक बढ़कर 12.50 लाख बोरी हो गई है। जयपुर सरसों कंडीशन का भाव 5650 रु प्रति क्विंटल 50 रु तेजी देखने को मिली है।सरसों तेल एक्सपेलर और कच्ची घानी क्रमश 1108 रु व 1118 रु – 6 रु की गिरावट खल 2400 रुपए -5 गिरावट का रहा है।
खाद्य तेल उद्योग एवं किसान संगठनों ने कीमतों में आ रही गिरावट पर गंभीर चिंता जताते हुए तत्काल इस पर ब्रेक लगाने की आवश्यकता पर जोर दिया है। उद्योग का कहना है कि केन्द्रीय एजेंसी – भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ (नैफेड) को किसानों से बढ़े पैमाने पर सरसों की खरीद के लिए बाजार में सक्रिय होना चाहिए। इसके साथ-साथ रिफाइंड पामोलीन के आयात को नियंत्रित किया जाना भी आवश्यक है। इस पर या तो पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए या फिर क्रूड पाम तेल की तुलना में इस पर कम से कम 20 प्रतिशत ऊंचा आयात शुल्क लगाया जाए।
केन्द्र सरकार ने सरसों का उत्पादन बढ़कर 128 लाख टन के नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने का अनुमान लगाया है जो पिछले सीजन के 119 लाख टन से काफी ज्यादा है। उल्लेखनीय है कि उद्योग व्यापार संगठनों ने गत वर्ष 110 लाख टन सरसों का उत्पादन आंका था। प्राप्त आंकड़ों के अनुसार फरवरी 2023 में राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न मंडियों में कुल मिलाकर करीब 5.04 लाख टन सरसों की आवक हुई जो फरवरी 2022 के दौरान हुई कुल आवक से करीब 45 प्रतिशत अधिक रही।
आगामी दिनों में यानी मार्च में सरसों की आवक और भी ज्यादा से बढ़ने की उम्मीद है। सरसों आवक में बढ़ोत्तरी होने तथा खाद्य तेलों के दाम में 15-20 प्रतिशत की गिरावट आने से सरसों का भाव पर दबाव बढ़ता जा रहा है ।
शनिवार को भारत में सरसों की कुल दैनिक आवक बढ़कर 12.50 लाख बोरी हो गई है। जयपुर सरसों कंडीशन का भाव 5650 रु प्रति क्विंटल 50 रु तेजी देखने को मिली है।सरसों तेल एक्सपेलर और कच्ची घानी क्रमश 1108 रु व 1118 रु – 6 रु की गिरावट खल 2400 रुपए -5 गिरावट का रहा है। यदि इस पर अंकुश लगाने का तत्काल जोरदार प्रयास नहीं किया गया तो किसानों को औने-पौने दाम पर अपना उत्पाद बेचने के लिए विवश होना पड़ेगा।
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